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Tulsi Puja Niyam : तुलसी पूजा करते समय रखें इन बातों का ध्यान, घर में बढ़ेगी धन सुख-समृद्धि

Tulsi Puja Niyam : सनातन धर्म में तुलसी पूजन को श्रेष्ठ श्रेष्ठ माना गया है, घर पर प्रत्येक दिन तुलसी पूजन करने से घर में सुख समृद्धि शांति आती है। तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हमारे शास्त्रों में तुलसी पूजन ( Tulsi Puja Niyam ) के कुछ नियम बनाए गए हैं, अगर आप तुलसी पूजन करते हैं और आप भगवान विष्णु माता लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप इन नियम का पालन जरूर करें-

तुलसी पूजा करते समय ध्यान रखें इन बातों का ध्यान ( तुलसी पूजा नियम )

एकादशी के दिन तुलसी पूजा के नियम ( Tulsi Puja Niyam )

बहुत सारे भक्त लोगों के मन में दुविधा रहती है की एकादशी के दिन तुलसी पूजा करनी चाहिए कि नहीं, आप सभी भक्त लोगों को बताना चाहता हूं कि आप एकादशी के दिन बिना तुलसी को स्पर्श किए दीपक जलाकर पूजा कर सकते हैं, एकादशी के दिन तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

तुलसी पूजन नियम के अनुसार रविवार के दिन तुलसी पूजा नहीं करनी चाहिए, रविवार के दिन तुलसी पूजा के साथ-साथ जल अर्पित करना भी पूरी तरह से मनाही है।

तुलसी पूजा का शुभ समय

हिंदू शास्त्रों के अनुसार तुलसी पूजन शाम के वक्त यानी की संध्या काल में करना सबसे शुभ माना जाता है। आप रविवार और एकादशी छोड़कर प्रत्येक दिन संध्याकाल के समय तुलसी पूजन कर सकते हैं।

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तुलसी पत्ते तोड़ने के नियम

तुलसी पत्ते तोड़ने की कुछ नियम बनाए गए हैं, आप रविवार और एकादशी के दिन तुलसी पत्ते ना तोड़े और ना ही तुलसी को स्पर्श करें, कभी भी सूर्यास्त के बाद तुलसी पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए, आप कभी भी जूठे हाथों से तुलसी के पत्ते ना तोड़े।

तुलसी पूजन के नियम

आप एकादशी और रविवार छोड़कर तुलसी माता को संध्या काल में जल अर्पित करें और घी का दीपक जलाएं और इसके बाद आप तुलसी माता की आरती करें, प्रत्येक दिन तुलसी पूजन करने से मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है और घर परिवार में सुख समृद्धि आती है।

तुलसी पूजा में जरूर करें ये पाठ

तुलसी पूजन करते समय आपको तुलसी चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए, तुलसी चालीसा पाठ करने से माता तुलसी जी की कृपा प्राप्त होती है और उनकी कृपा से सुख समृद्धि में वृद्धि होती है, माता तुलसी की कृपा यानी की लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है-

तुलसी चालीसा ( Tulsi Chalisa )

॥ दोहा॥

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।

नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी॥

श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।

जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब॥

॥ चौपाई ॥

धन्य धन्य श्री तुलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा॥

दियो वचन हरि तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा॥

कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला॥

यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥

तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥

भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥

यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥

लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पार्वती को॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा मंज नाही अन्तर॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥

बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥

पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥ॉ

॥ दोहा ॥

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी।

दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी॥

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न।

आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र॥

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।

जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम॥

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।

मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास॥

॥ इति श्री तुलसी चालीसा ॥

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