Amavasya Kab Hai : सनातन धर्म में अमावस तिथि का बहुत ही अलग महत्व माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में अमावस्या तिथि आती है। अमावस्या तिथि के दिन पूजा पाठ करना और व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। अमावस्या के दिन गंगा स्नान का बहुत ही खास महत्व होता है। अमावस्या तिथि के दिन पूजा पाठ करना गंगा स्नान करने से साधक को विशेष फल मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह भगवान कृष्ण को समर्पित होता है और इस माह मे पड़ने वाले अमावस्या का बहुत ही खास बात होता है। इस अमावस तिथि में धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, और पितरों के तर्पण करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। नवंबर महीने में अमावस्या कब है ( Amavasya Kab Hai ) के बारे में जानते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष माह मे पड़ने वाले मार्गशीर्ष अमावस का बहुत ही बड़ा महत्व माना जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या में भगवान भोलेनाथ भगवान विष्णु और माता गंगा जी की पूजा करने से साधक को विशेष फल प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि के दिन कोई भी महिला सच्चे मन से गंगा स्नान करती है व्रत रहती है भगवान भोलेनाथ भगवान विष्णु और माता गंगा की पूरी विधि विधान के साथ पूजा करती है तो उसे देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और उसके पति की आयु वृद्धि होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन कोई भी व्यक्ति गंगा स्नान करके और भगवान भोलेनाथ भगवान विष्णु जी की पूजा करके अपनी कठिनाइयों से छुटकारा पा सकता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या कब है ( Amavasya Kab Hai )
हिंदू पंचांग के अनुसार नवंबर में मार्गशीर्ष अमावस्या 30 नवंबर को सुबह 10:29 पर शुरू होगी और इसका समापन 1 दिसंबर सुबह 11:50 पर होगा। इस हिसाब से मार्गशीर्ष अमावस्या 1 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी। आप 1 दिसंबर के दिन सुबह गंगा स्नान कर सकते हैं और पितरों को दान कर सकते हैं।
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मार्गशीर्ष अमावस्या पूजा विधि
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि का बहुत ही विशेष महत्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान करना और पूरे विधि विधान के साथ व्रत रहना और पूजा करने से आपकी जिंदगी में कठिनाइयों से छुटकारा मिलता है और आपकी जिंदगी में सुख समृद्धि आती है।
- मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन साधक को सुबह उठकर गंगा स्नान करना चाहिए।
- साधक को गंगा स्नान करने के बाद सूर्य भगवान को गंगाजल अर्पित करें और इसके बाद व्रत का संकल्प ले।
- इसके बाद भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु की पूजा करें।
- इसके बाद आप पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करें और शाम के वक्त दीपदान करें।
निष्कर्ष
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